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इंडिया में फिर से मुनाफे का सौदा बनेगी क्रिप्टोकरंसी




 क्रिप्टोकरंसीज के लिए पिछले कुछ वर्ष काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे। इसके उभार ने कई निवेशकों को रातोंरात मालामाल कर दिया। लेकिन, सरकारी रेगुलेशन की मार पड़ने पर इसमें बहुत मंदी भी आई और कई निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। हालांकि, इन सबके बावजूद अभी भी लोगों में क्रिप्टो का क्रेज खत्म नहीं हुआ। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टोकरंसी ईथर (Ether) को चलाने वाले क्रिप्टो नेटवर्क इथेरियम (Ethereum) का दावा है कि वह अपने सिस्टम को अपग्रेड कर रहा है। इससे क्रिप्टो नेटवर्क को चलाने का खर्च कम होगा और निवेशकों को लाभ होगा। अगर ऐसा हुआ, तो यह क्रिप्टोकरंसी की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है।

इथेरियम ने अपने सिस्टम अपग्रेड को मर्ज (Merge) नाम दिया। इससे इथेरियम ब्लॉकचेन ईकोसिस्टम में मौजूद लोगों के लिए कोई टेक्नोलॉजी दिक्कत नहीं होगी। लेकिन, भारत में ईथर रखने वाले निवेशकों को टैक्स चुकाना पड़ सकता है। इससे उनके वॉलेट में ईथर होल्डिंग्स दो तरह की क्रिप्टोकरंसीज में बंट जाएगी। इसमें डिजिटल कॉइन के अलावा ईथर PoW यानी प्रूफ ऑफ वर्क भी होगी।

कंपनी ने दावा किया है कि इस सॉफ्टवेयर बदलाव से इथेरियम में एनर्जी का प्रयोग 99% तक कम हो जाएगा। मतलब जो काम 100 यूनिट बिजली में होता था, वह अब सिर्फ एक यूनिट में हो जाएगा। आलोचक अक्सर अधिक बिजली की खपत का मुद्दा उठाकर ब्लॉकचेन पर निशाना साधते हैं। इथेरियम का नया दांव उनका भी मुंह बंद कर देगा। ब्लॉकचेन को वैलिडेट करने के लिए अब प्रूफ ऑफ वर्क (PoW) के बजाय प्रूफ ऑफ स्टेक (PoS) सिस्टम अपनाया जाएगा। इसमें क्रिप्टोकरंसी ट्रांजैक्शन भी शामिल है। PoW के मुकाबले PoS में नाममात्र की बिजली खर्च होती है।

अब सवाल उठता है कि PoW और PoS क्या हैं? मोटे तौर ये ऐसे प्रोसेस हैं, जिनके ज़रिए ब्लॉकचेन्स के भीतर ब्लॉक बनाए जाते हैं। साथ ही पुराने ब्लॉक्स को वैलिडेट किया जाता है। PoW के तहत इथेरियम ने जटिल एलगोरिद्म और मैथेमेटिकल प्रॉब्लम्स को सुलझाने के लिए कंप्यूटर के नेटवर्क को decentralized कर दिया। कंप्यूटर के मालिक को माइनर्स कहा जाता है। वे ब्लॉक्स को सॉल्व और वैलिडेट करते हैं। उन्हें नई क्रिप्टोकरंसीज दी जाती है।

PoS सिस्टम के तहत मौजूदा क्रिप्टो होल्डर्स को अपनी होल्डिंग्स को ऊपर उठाने की ज़रूरत होगी, नए ट्रांजेक्शन को वैलिडेट करना होगा और उन्हें क्रिप्टोकरंसी में भुगतान किया जाएगा। PoS सिस्टम में अगर कोई माइनर सिस्टम के साथ कोई गड़बड़ी करने की कोशिश करता है, तो सिस्टम क्रिप्टो को वापस ले लेता है। अगर कोई ट्रांजेक्शन को वैलिडेट करने में नाकाम रहता है, तो उसे अपना थोड़ा या पूरा स्टेक गंवाना पड़ सकता है।

कुछ लोगों को लगता है कि मर्ज के बाद PoW खत्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा है नहीं। इथेरियम पारिस्थितिकी तंत्र की सहमति से आधारित सिस्टम है। PoW माइनर्स ने क्रिप्टो माइनिंग सिस्टम बनाने में अरबों डॉलर का निवेश किया है। इसलिए ईथर क्रिप्टो को दो हिस्सों में बांटा जाएगा। इसमें एक नए PoS सिस्टम का प्रयोग करेगा और दूसरा ईथर PoW सिस्टम पर चलेगा। इस बारे में Tezos India Foundation के प्रेसिडेंट ओम मालवीय का कहना है कि मौजूदा निवेशकों को दोनों करंसी 1:1 के अनुपात में मिलेगी। मार्केट इनमें से हर तरह की क्रिप्टो की कीमत तय करेगा। नए कॉइन की यूटिलिटी इस बात पर निर्भर होगी कि मार्केट से इसे कैसी प्रतिक्रिया मिलती है।

सबसे अहम मसला, क्या ईथर रखने वालों को टैक्स देना होगा? क्रिप्टो टैक्स कंसल्टेंसी कॉइनएक्स (KoinX) के फाउंडर और सीईओ पुनीत अग्रवाल बताते हैं कि इस बात पर चर्चा हो रही है कि सिस्टम अपग्रेडेशन के बाद भी कुछ माइनर्स इथेरियम PoW चेन को समर्थन करना जारी रख सकते हैं। इथेरियम PoS सिस्टम में शिफ्ट करने वालों के पास PoW चेन पर 1:1 के हिसाब से ईथर होल्डिंग होगी। इसे बोनस शेयर की तरह माना जा सकता है। ऐसे में होल्डर्स को नए टोकन पर इनकम टैक्स देना होगा। अगर कोई अपनी पुरानी या नई होल्डिंग बेचता है, तो इस पर कैपिटल गेन्स टैक्स चुकाना पड़ेगा। ऐसे मामले में ईथर PoW के एक्विजिशन की कॉस्ट निल मानी जाएगी और इस हिसाब से टैक्स लगेगा।

इस पूरी प्रक्रिया का ज्यातर क्रिप्टो उपयोगकर्ताओं पर फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन, अभी ज़्यादातर क्रिप्टो एक्सचेंज ने ईथर कॉइन को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया रोक रखी है। इसकी वजह वजीरएक्स के VP राजगोपाल मेनन बताते हैं। उनका कहना है, 'मर्ज की प्रक्रिया कई वर्षों से चल रही है। सॉफ्टवेयर को डीबग कर दिया गया है और फाइनल प्रॉडक्ट तैयार है। इस प्रक्रिया के पूरा होने तक हमने भी Deposits और Withdrawals रोक दिया है, लेकिन यह क़दम अस्थाई है। जैसे ही सारी चीज़ें सही होंगी, हम भी पहले की तरह काम करने लगेंगे।'

ज्यादातर इंडस्ट्री के जानकार इस बदलाव को अच्छा बता रहे हैं। उनका कहना है कि इससे एनर्जी की बचत के साथ निवेशकों को भी अधिक लाभ होगा। अब इथेरियम एक ट्रेडिशनल फाइनैंशल एसेट की तरह काम करेगा, जो ब्याज़ देते हैं। किसी बॉन्ड या फिर डिपॉजिट सर्टिफिकेट की तरह। इस सूरत में यह हेज फंड्स, एसेट मैनेजर्स और बहुत से अमीरों को भी लुभाएगा, जो अब तक इससे दूरी बनाए हुए थे। नए अपडेट के बाद ट्रांजैक्शन भी कम फीस में तेज़ी से होगा।


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